गवरमेंट बॉटनिकल गार्डन

गवरमेंट बॉटनिकल गार्डन की बात करे तो यह घूमने के लिए और देखने के लिए बहुत ही जबर्दस्त जगह है | तो चलिए गवरमेंट बॉटनिकल गार्डन के बारे में जानते हैं | इस गार्डन में 2000 से भी अधिक विदेशी प्रजाति के पेड़-पौधे हैं। इन उद्यानों को घूमने के लिए हरसाल लाखों पर्यटक आते है

मनाली

मनाली भारत के उत्तरी हिमाचल प्रदेश राज्य में स्थित है। एक उच्च ऊंचाई वाला हिमालयी रिसॉर्ट शहर है। जो की कुल्लू घाटी के उत्तरी छोर पर बसा हुआ है। मनाली शहर की बात करे तो मनाली शहर का नाम मनु के नाम पर पड़ा है। मनाली शब्द का शाब्दिक अर्थ "मनु का निवास-स्थान" होता है।

विक्टोरिया मेमोरियल हॉल

विक्टोरिया मेमोरियल हॉल के बारे में बता दे की यह भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में स्थित है। यह वर्तमान में एक संग्रहालय और एक पर्यटन आकर्षण के रूप में कार्य करता है। विक्टोरिया मेमोरियल हॉल का निर्माण रानी विक्टोरिया के 25 साल का शासन काल पूर्ण होने के उपलक्ष्य में किया गया था।

हाजी अली दरगाह

हाजी अली दरगाह भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। हाजी अली के बारे में बता दे की यह एक धनी मुस्लिम व्यापारी, जो हाजी अली शाह बुखारी नामक एक संत द्वारा बनाया गया था। उन्होंने कहा कि मक्का की तीर्थयात्रा पर तैयार करने से पहले सभी सांसारिक सुखों का त्याग दिया।

मजोरदा बीच

मजोरदा बीच के बारे में बता दे की यह भारत के गोवा राज्य में स्थित है। यह मंडगांव रेलवे स्टेशन से करीब 11 किलोमीटर की दुरी पर है। मजोरदा समुद्र तट से कम दूरी पर Arossim, Benaulim, Velsao, Varca, पोंडा, Salcette और Bogmalo समुद्र तट जो गोवा के अन्य लोकप्रिय स्थलों में से एक है।

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26 Mar 2021

Shiv Nadar | Richest People | HCL

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शिव नादर


व्यवसाय/पद: एचसीएल के अध्यक्ष

शिव नादर भारत के प्रमुख उद्योगपति एवं समाजसेवी हैं। वे एचसीएल और शिव नादर फाउंडेशन के संस्थापक और अध्यक्ष हैं। उन्होंने 1971 में एचसीएल की स्थापना की और धीरे-धीरे कंपनी को हार्डवेयर के साथ-साथ आईटी उद्योग का एक बड़ा नाम  बना दिया। सन् 2010 में उनकी व्यक्तिगत सम्पत्ति 4.2 बिलियन अमेरिकी डालर के तुल्य है। उनको सन 2008 में भारत सरकार द्वारा उद्योग एवं व्यापार के क्षेत्र में पद्मभूषण से सम्मानित किया था। पाँच देशों में, 100 से ज्यादा कार्यालय, 30 हजार से ज्यादा कर्मचारी-अधिकारी और दुनिया भर के कंप्यूटर व्यवसायियों, उपभोक्ताओं का विश्वास है |.. 

प्रारंभिक जीवन (Early Life)


शिव नादर का जन्म तमिलनाडु के थूठुकुडि जिले के मूलाइपुजहि गांव में 18 जुलाई 1945 को हुआ था। शिव ने कुम्बकोनम के टाउन हायर सेकेंडरी स्कूल से प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने वहां सन 1955 से 1957 तक पढाई की। इसके बाद ‘द अमेरिकन कॉलेज, मदुरै’ से प्री-यूनिवर्सिटी डिग्री प्राप्त की। तत्पश्चात कोयंबटूर के पीइसजी कॉलेज से इलेक्ट्रिकल और इलेक्ट्रॉनिक्स इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त की।

कैरियर (Carrier)


शिव ने वर्ष 1967 में पुणे स्थित कूपर इंजीनियरिंग से अपने करियर की शुरुआत की, लेकिन वे इससे संतुष्ट नहीं थे क्योंकि वो अपना व्यवसाय शुरू करने की ख्वाहिश रखते थे। वर्ष 1976 में 6 युवा इंजीनियरों के साथ उन्होंने ‘माइक्रोकॉम्प लिमिटेड’नामक एक कंपनी बनाई, जो टेलीडिजिटल कैलकुलेटर्स बेचने का काम करने लगी। इसके बाद उन्होंने ‘हिंदुस्तान कंप्यूटर्स लिमिटेड’(एचसीएल) नामक कंप्यूटर बनाने वाली कंपनी बनाई और वर्ष 1982 में अपने पहले पीसी के साथ ‘एचसीएल’बाजार में उतरा। एचसीएल के लिए एक बड़ी अहम् बात ये रही की कुछ वर्ष पहले ही (1977) आईबीएम ने भारत छोड़ा था जिससे आईटी सेक्टर में एक बड़ा खालीपन हो गया था। इसका भरपूर फायदा एचसीएल ने उठाया और इस रिक्तता को भरा। इसके साथ-साथ कंपनी ने अपने ग्राहकों का दिल भी जीत लिया। इसके बाद नादर ने पलट कर नहीं देखा और विदेशी जमीन पर भी उन्होंने ने खुद को स्थापित कर लिया और एक के बाद एक सफलता उनके कदम चूमती रही।

जल्दी ही नादर ने अपने आईटी व्यवसाय में पांच कंपनियां- एचसीएल टेक्नोलॉजीज (ग्लोबल आईटी सर्विस कंपनी), एचसीएल कॉमनेट (नेटवर्क सर्विसेज कंपनी), एचसीएल इंफोसिस्टम्स (इंडियन आईटी हार्डवेयर लीडर), एचसीएल पेरॉट (आईटी एप्लीकेशंस) और एनआईआईटी (एजुकेशन सर्विसेज) समाहित कर लीं।

वर्ष 1980 में, आईटी हार्डवेयर बेचने के लिए एचसीएल ने सिंगापुर में ‘फार ईस्ट कम्प्यूटर्स’ की स्थापना के साथ अंतरराष्ट्रीय बाजार में कदम रखा। इस उद्यम के प्रथम वर्ष में लगभग 10 लाख रूपए की आमदनी हुई। नादर इस उद्यम के सबसे बड़ी शेयरधारक बने रहे।

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Shiv Nadar And Roshni Nadar

Shiv Nadar | Richest People | HCL

वर्ष 1989 में एचसीएल ने अमेरिकी कंप्यूटर हार्डवेयर मार्केट में हाथ आजमाने की कोशिस की पर ये कोशिश असफल साबित हुई और कंपनी ने वर्ष 1991 अपने आप को पीसी व्यवसाय से बाहर कर लिया। उसके बाद नादर ने जॉन हॉपकिंस मेडिसिन इंटरनेशनल के साथ मिलकर एक क्लीनिक श्रृंखला एचसीएल Avitas की शुरुआत की है।

इस अपार सफलता के साथ-साथ नादर ने खुद को समाजसेवा से भी जोड़ लिया और ‘शिवनादर फाउंडेशन’की स्थापना की जिसके जरिए भारतीय शैक्षणिक व्यवस्था में सुधार के लिए कार्य करने लगे। उन्होंने चेन्नई में ‘एसएसएन कॉलेज ऑफ इंजीनियरिंग’की स्थापना की, जो आज देश के सर्वश्रेष्ठ निजी इंजीनियरिंग कॉलेजों में से एक है। इसके बाद उन्होंने उत्तर प्रदेश के ग्रेटर नोएडा में ‘शिव नादर यूनिवर्सिटी’ की नींव रखी, जहां अंडरग्रेजुएट, पोस्टग्रेजुएट और प्रोफेशनल डिग्री की शिक्षा दी जाती है। उत्तर प्रदेश में ‘विद्याज्ञान’ पब्लिक स्कूलों का निर्माण किया गया, जहां ग्रामीण बच्चों को मुफ्त में विश्वस्तरीय शिक्षा दी जाती है।

पुरस्कार और सम्मान (Awards and Honors)


  • 1995: डाटाक्वेस्ट ने उन्हें ‘आई टी मैन ऑफ़ द ईयर’ चुना।
  • 2005: प्रधानमंत्री ने उन्हें ‘सीएनबीसी बिजनेस एक्सिलेंस’ पुरस्कार से नवाजा।
  • 2006: ऑल इंडिया मैनेजमेंट एसोसिएशन (AIMA) ने मानद फैलोशिप से सम्मानित किया।
  • 2007: मद्रास विश्वविद्यालय ने सॉफ्टवेयर प्रौद्योगिकी को बढ़ावा देने में उनके योगदान के लिए उन्हें डॉक्टरेट की मानद डिग्री (डी एस सी) से सम्मानित किया।
  • 2007: अर्न्स्ट एंड यंग ने उन्हें ‘इंटरप्रेन्योर ऑफ़ द ईयर 2007′ सम्मान से नवाज़ा।
  • 2008: आईटी ट्रेड एंड इंडस्ट्री सहित जनसेवा क्षेत्र में उनके योगदान के लिए वर्ष 2008 में उन्हें ‘पद्मभूषण’से सम्मानित किया गया।
  • 2009: फोर्ब्स पत्रिका ने एशिया पैसिफिक रीजन के ‘48 हीरोज ऑफ फिलेनथ्रोपी’ में उन्हें शामिल किया।
  • 2010: ‘डाटाक्वेस्ट लाइफ टाइम अचीवमेंट अवार्ड’ से सम्मानित किया गया।
  • वर्तमान में शिव आईआईटी कानपुर के अध्यक्ष हैं।



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24 Mar 2021

Azim Premji | Indian Businessman & Richest Man | Wipro

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अजीम प्रेमजी

अजीम प्रेमजी का पूरा नाम ( अजीम हाशिम प्रेमजी ) एक भारतीय बिजनेस टाइकून, निवेशक, इंजीनियर और परोपकारी हैं | भारतीय व्यापार उद्यमी, जिन्होंने विप्रो लिमिटेड के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया, सॉफ्टवेयर उद्योग में एक विश्व नेता के रूप में विविधीकरण और विकास के चार दशकों के दौरान कंपनी का मार्गदर्शन किया।

कार्य क्षेत्र: भारतीय उद्योगपति, विप्रो के अध्यक्ष


अजीम प्रेमजी वर्तमान में नवंबर 2017 तक 19.5 अरब अमेरिकी डॉलर के अनुमानित शुद्ध मूल्य के साथ भारत का दूसरा सबसे अमीर व्यक्ति है। 2013 में, वह द गिविंग प्लेज पर हस्ताक्षर करके अपनी संपत्ति का कम से कम आधा हिस्सा देने पर सहमत हुए। प्रेमजी ने अजीम प्रेमजी फाउंडेशन को $ 2.2 बिलियन दान के साथ शुरू किया, जो भारत में शिक्षा पर केंद्रित था।

अज़ीम हाशिम प्रेमजी एक भारतीय उद्योगपति, निवेशक और भारतीय सॉफ्टवेयर कंपनी विप्रो के अध्यक्ष हैं। वे भारत के सबसे धनी व्यक्तियों में से एक हैं और सन 1999 से लेकर सन 2005 तक भारत के सबसे धनि व्यक्ति भी थे। वे एक लोकोपकारी इंसान हैं और अपने धन का आधे से ज्यादा हिस्सा दान में देने का निश्चय किया है। एशियावीक ने उन्हें दुनिया के टॉप 20 प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया और टाइम मैग्जीन ने दो बार उन्हें दुनिया के टॉप 100 प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया है। अजीम प्रेमजी ने अपने नेतृत्व में विप्रो को नई ऊंचाइयां दी और कंपनी का कारोबार 2.5 मिलियन डॉलर से बदकार 7 बिलियन डॉलर कर दिया। आज विप्रो दुनिया की सबसे बड़ी सॉफ्टवेयर आईटी कंपनियों में से एक मानी जाती है। फोर्ब्स मैग्जीन ने उन्हें दुनिया के साबसे अमीर व्यक्तियों की सूचि में उनका नाम शामिल किया है और उन्हें ‘भारत का बिल गेट्स’ का खिताब दिया है।

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प्रारंभिक जीवन (Early Life)

अजीम प्रेमजी का जन्म 24 जुलाई 1945 को मुंबई के एक निज़ारी इस्माइली शिया मुस्लिम परिवार में हुआ। इनके पूर्वज मुख्यतः कछ (गुजरात) के निवासी थे। उनके पिता एक प्रसिद्ध व्यवसायी थे और ‘राइस किंग ऑफ़ बर्मा’ के नाम से जाने जाते थे। विभाजन के बाद मोहम्मद अली जिन्नाह ने उनके पिता को पाकिस्तान आने का न्योता दिया था पर उन्होंने उसे ठुकराकर भारत में ही रहने का फैसला किया। सन 1945 में अजीम प्रेमजी के पिता मुहम्मद हाशिम प्रेमजी ने महाराष्ट्र के जलगाँव जिले में ‘वेस्टर्न इंडियन वेजिटेबल प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ की स्थापना की। यह कंपनी ‘सनफ्लावर वनस्पति’ और कपड़े धोने के साबुन ’787’ का निर्माण करती थी।

उनके पिता ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई के लिए उन्हें अमेरिका के स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय भेजा पर दुर्भाग्यवश इसी बीच उनके पिता की मौत हो गयी और अजीम प्रेमजी को इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में ही छोड़कर भारत वापस आना पड़ा। उस समय उनकी उम्र मात्र 21 साल थी।

भारत वापस आकर उन्होंने कंपनी का कारोबार संभाला और इसका विस्तार द्दोसरे क्षेत्रों में भी किया। सन 1980 के दशक में युवा व्यवसायी अजीम प्रेमजी ने उभरते हुए इनफार्मेशन टेक्नोलॉजी के महत्त्व और अवसर को पहचाना और कंपनी का नाम बदलकर विप्रो कर दिया। आई.बी.एम. के निष्कासन से देश के आई.टी. क्षेत्र में एक खालीपन आ गया था जिसका फायदा प्रेमजी ने भरपूर उठाया। उन्होंने अमेरिका के सेंटिनल कंप्यूटर कारपोरेशन के साथ मिलकर मिनी-कंप्यूटर बनाना प्रारंभ कर दिया। इस प्रकार उन्होंने साबुन के स्थान पर आई.टी. क्षेत्र पर ध्यान केन्द्रित किया और इस क्षेत्र में एक प्रतिष्ठित कंपनी बनकर उभरे।

( Azim Premji | Indian Businessman & Richest Man | Wipro )

लोकप्रिय कार्य (Popular Works)

सन 2001 में उन्होंने ‘अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ की स्थापना की। यह एक गैर लाभकारी संगठन है जिसका लक्ष्य है गुणवत्तायुक्त सार्वभौमिक शिक्षा जो एक न्यायसंगत, निष्पक्ष, मानवीय और संवहनीय समाज की स्थापना में मददगार हो। यह फाउंडेशन भारत के लगभग 13 लाख सरकारी स्कूलों में प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में प्रगति के लिए काम करता है। यह संगठन वर्तमान में कर्नाटक, उत्तराखंड, राजस्थान, छत्तीसगढ़, पांडिचेरी, आंध्र प्रदेश, बिहार और मध्य प्रदेश की सरकारों के साथ मिलकर कार्य कर रहा है। सन 2010 में, अजीम प्रेमजी ने देश में स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए लगभग 2 अरब डॉलर दान करने का वचन दिया। भारत में यह अपनी तरह का सबसे बड़ा दान है। कर्नाटक विधान सभा के अधिनियम के तहत अजीम प्रेमजी विश्वविद्यालय भी स्थापित किया गया।

‘द गिविंग प्लेज’ (The Giving Pledge)


वॉरेन बफेट और बिल गेट्स द्वारा प्रारंभ किया गया ‘द गिविंग प्लेज’ एक ऐसा अभियान है जो दुनिया के सबसे धनि व्यक्तियों को अपनी अकूत संपत्ति का ज्यादातर भाग समाज के हित और परोपकार के लिए दान करने के लिए प्रोत्साहित करता है। अजीम प्रेमजी इसमें शामिल होने वाले पहले भारतीय हैं। रिचर्ड ब्रैनसन और डेविड सैन्सबरी के बाद वे तीसरे गैर अमेरिकी व्यक्ति हैं। सन 2013 में उन्होंने इस बात का खुलासा किया कि उन्होंने अपनी कुल संपत्ति का लगभग 25 प्रतिशत दान में दे दिया है और 25 प्रतिशत अगले पांच सालों में करेंगे।

पुरस्कार और सम्मान (Awards and Honors)


  • बिजनेस वीक द्वारा प्रेमजी को महानतम उद्यमियों में से एक कहा गया है
  • सन 2000 में मणिपाल अकादमी ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया सन
  • सन 2005 में भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया
  • 2006 में ‘राष्ट्रीय औद्योगिक इंजीनियरिंग संस्थान, मुंबई, द्वारा उन्हें लक्ष्य बिज़नेस विजनरी से सम्मानित किया गया
  • 2009 में उन्हें कनेक्टिकट स्थित मिडलटाउन के वेस्लेयान विश्वविद्यलाय द्वारा उनके उत्कृष्ट लोकोपकारी कार्यों के लिए डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया गया
  • सन 2011 में उन्हें भारत सरकार द्वारा देश के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया
  • सन 2013 में उन्हें ‘इकनोमिक टाइम्स अचीवमेंट अवार्ड’ दिया गया
  • सन 2015 में मैसोर विश्वविद्यालय ने उन्हें डॉक्टरेट की मानद उपाधि से सम्मानित किया

निजी जीवन

अजीम प्रेमजी का विवाह यास्मीन के साथ हुआ और दंपत्ति के दो पुत्र हैं – रिषद और तारिक। रिषद वर्तमान में विप्रो के आई.टी. बिज़नेस के ‘मुख्य रणनीति अधिकारी’ हैं।

 जीवन घटनाक्रम (Time Line)
  • 1945: 24 जुलाई को अजीम रेमजी का जन्म मुंबई में हुआ
  • 1966: अपने पिता की मृत्यु के बाद अमेरिका से पढ़ाई छोड़ भारत वापस आ गए
  • 1977: कंपनी का नाम बदलकर ‘विप्रो प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ कर दिया गया
  • 1980: विप्रो का आई.टी. क्षेत्र में प्रवेश
  • 1982: कंपनी का नाम ‘विप्रो प्रोडक्ट्स लिमिटेड’ से बदलकर ‘विप्रो लिमिटेड’ कर दिया गया
  • 1999-2005: सबसे धनी भारतीय रहे
  • 2001: उन्होंने ‘अजीम प्रेमजी फाउंडेशन’ की स्थापना की
  • 2004: टाइम मैगज़ीन द्वारा दुनिया के टॉप 100 प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया
  • 2010: एशियावीक के विश्व के 20 सबसे शक्तिशाली व्यक्तियों की सूचि में नाम
  • 2011: टाइम मैगज़ीन द्वारा दुनिया के टॉप 100 प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया
  • 2013: प्रेमजी ने अपने धन का 25 प्रतिशत भाग दान कर दिया और अतिरिक्त 25 प्रतिशत अगले पांच सालों में दान करने की भी घोषणा की

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7 Jul 2020

Mukesh Ambani Biography in Hindi

मुकेश अंबानी 

Mukesh-Ambani-Biography

                         Mukesh Ambani Biography in Hindi

परिचय  (Introduction)

  • पूरा नाम----------मुकेश धीरूभाई अंबानी
  • उपनाम-----------मुकु
  • जन्मतिथि----------19 अप्रैल 1957
  • आयु---------------------63 वर्ष
  • जन्म स्थान-----------------एडेन, एडेन की एक कॉलोनी (अब यमन)
  • राशि---------------------मेष
  • लम्बाई (लगभग)---------------फीट इन्च- 5’ 7”
  • वजन/भार (लगभग)----------90 कि० ग्रा०
  • आँखों का रंग---------------गहरा भूरा
  • बालों का रंग----------------काला
  • राष्ट्रीयता-----------------------भारतीय
  • गृहनगर--------------------मुंबई, भारत
  • स्कूल/विद्यालय---------------हिल ग्रेंज हाई स्कूल, पेडर रोड, मुंबई, भारत
  • कॉलेज/महाविद्यालय/विश्वविद्यालय----रसायन प्रौद्योगिकी संस्थान, माटुंगा, मुंबई,भारत
  •                                             स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी, कैलिफ़ोर्निया, यूएसए
  • शैक्षिक योग्यता------------केमिकल इंजीनियरिंग में स्नातक
  •                                    स्टैनफोर्ड विश्वविद्यालय से परास्नातक (बीच में ही छोड़ दी)
  • व्यवसाय-----------------भारतीय व्यवसायी
  • शौंक--------------------पुस्तकें पढ़ना, मित्रों के साथ मौज-मस्ती करना, फ़िल्में देखना, पुराने                                        हिंदी गाने सुनना, तैराकी करना, पैदल यात्रा करना

परिवार (Family)

  • पिता----धीरूभाई अंबानी (भारतीय व्यवसायी)
  • माता----कोकिला बेन अंबानी
  • भाई-----अनिल अंबानी (भारतीय व्यवसायी)

Mukesh-Ambani

  • बहन----नीना और दीप्ती

Mukesh-Ambani

  • वैवाहिक स्थिति------विवाहित
  • विवाह तिथि--------8 मार्च 1985
  • पत्नी--------------नीता अंबानी

Mukesh-Ambani

बच्चे (Children)

  • बेटा-----आकाश अंबानी और अनंत अंबानी
  • बेटी-----ईशा अंबानी

Mukesh-Ambani

  • धर्म------हिन्दू
  • जाति-----मोध वाणिक

पसंदीदा चीजें (Favorite Things)

  • पसंदीदा भोजन----------इडली सांभर (दक्षिण भारतीय व्यंजन), पैनकी (गुजराती व्यंजन), 
  •                                             डोसा, गुजराती व्यंजन, भुनी हुई मूंगफली
  • पसंदीदा रेस्तरां-----------मैसूर कैफे, माटुंगा, मुंबई
  • पसंदीदा कार------------मेबैक (Matbach)
  • पसंदीदा रंग-------------श्वेत
  • पसंदीदा व्यवसायी--------धीरूभाई अम्बानी और आनंद महिंद्रा
  • पसंदीदा अभिनेता--------आमिर खान, ऋतिक रोशन और शाहरुख़ खान

धन संबंधित विवरण (Money Related Details)

  • कार संग्रह--------------बेंटले फ्लाइंग स्पूर, रोल्स रॉयस फैंटम, मर्सिडीज बेंज एस क्लास,                                            मेबैक 62, बीएमडब्लू 760li
  • जहाज संग्रह------------बोइंग बिजनेस जेट 2, फाल्कन 900EX, एयरबस 319 कॉरपोरेट जेट
  • घर/एस्टेट--------------₹650 करोड़ (लगभग) कीमत वाली 27 मंजिला इमारत अंटिलिया
  • संपत्ति (वर्ष 2018 के अनुसार)-------$40.1 बिलियन (₹2,60,622 करोड़)

कार्यक्षेत्र (Scope of Work) :--- उद्योगपति, रिलायंस इंडस्ट्रीज के अध्यक्ष

प्रारंभिक जीवन (Early Life)

मुकेश अम्बानी का जन्म 19 अप्रैल, 1957 में यमन स्थित अदेन शहर में धीरुभाई अम्बानी और कोकिलाबेन अम्बानी के घर हुआ था। उस समय उनके पिता अदेन में काम करते थे। मुकेश अम्बानी के छोटे भाई अनिल अम्बानी हैं और उनकी दो बहने भी हैं – दीप्ती सल्गओंकर और नीना कोठारी। 1970 के दशक तक मुकेश अम्बानी का परिवार मुंबई के भुलेश्वर में दो कमरों के मकान में रहता था पर उसका बाद धीरुभाई ने मुंबई के कोलाबा क्षेत्र में एक 14 मंजिल ईमारत (सी विंड) खरीद लिया जहाँ मुकेश और अम्बानी परिवार के अन्य सदस्य कई सालों तक रहे।

मुकेश की प्रारंभिक शिक्षा मुंबई के पेद्दर रोड स्थित ‘हिल ग्रान्ज हाई स्कूल में हुई। यहाँ मुकेश के करीबी मित्र आनंद जैन उनके सहपाठी थे और इसी स्कूल में उनके छोटे भाई अनिल अम्बानी भी पढ़ते थे। मुकेश अम्बानी ने ‘इंस्टिट्यूट ऑफ़ केमिकल टेक्नोलॉजी, माटुंगा’ से केमिकल इंजीनियरिंग ऑफ़ बैचलर ऑफ़ इंजीनियरिंग की डिग्री ग्रहण की। इसके पश्चात मुकेश ने एम.बी.ए. करने के लिए स्तान्फोर्ड विश्वविद्यालय में दाखिला लिया पर एक साल बाद ही अपने पिता धीरुभाई अम्बानी की मदद करने के लिए पढ़ाई छोड़ दी।

करियर (Career)

सन 1980 में जब इंदिरा गाँधी सरकार ने पी.एफ.वाई. (पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न) का निर्माण निजी क्षेत्र के लिए खोला तब रिलायंस ने भी लाइसेंस के लिए अपनी दावेदारी पेश की और टाटा, बिड़ला तथा 43 और दिग्गजों के मध्य लाइसेंस पाने में कामयाबी हासिल की। पी.एफ.वाई. (पॉलिएस्टर फिलामेंट यार्न) कारखाने के निर्माण के लिए धीरुभाई अम्बानी ने मुकेश को एम.बी.ए. की पढ़ाई बीच में ही बुला लिया। मुकेश अपनी पढ़ाई छोड़ भारत आ गए और कारखाने के निर्माण में जुट गए।

मुकेश अम्बानी के नेतृत्व में ही रिलायंस ने भारत के सबसे बड़ी दूरसंचार कंपनियों में से एक ‘रिलायंस इन्फोकॉम लिमिटेड’ (अब रिलायंस कम्युनिकेशन लिमिटेड) की स्थापना की।

मुकेश ने जामनगर (गुजरात) में बुनियादी स्तर की विश्व की सबसे बड़ी पेट्रोलियम रिफायनरी की स्थापना करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। सन 2010 में इस रिफायनरी की क्षमता 660,000 बैरल प्रति दिन थी यानी 3 करोड़ 30 लाख टन प्रति वर्ष। लगभग 100000 करोड़ रुपयों के निवेश से बनी इस रिफायनरी में पेट्रोकेमिकल, पावर जेनरेशन, पोर्ट तथा सम्बंधित आधारभूत ढांचा है।

रिलायंस इंडस्ट्रीज ने एक बार फिर ‘रिलायंस जिओ’ के माध्यम से दूरसंचार के क्षेत्र में कदम रखने जा रही है। इस बावत रिलायंस इंडस्ट्रीज ने अनिल अम्बानी के रिलायंस कम्युनिकेशनन्स और सुनील मित्तल के एयरटेल के साथ उनके ढांचे के इस्तेमाल के लिए करार भी किया है। जून 2014 में रिलायंस के ए.जी.एम. के दौरान मुकेश ने अगले 3 साल में 4G सेवाएं प्रारंभ करने का एलान भी किया।

निजी जीवन (Private Life)

मुकेश अंबानी स्वर्गीय धीरूभाई अंबानी और कोकिला बेन अम्बानी के पुत्र हैं। धीरूभाई अंबानी ने ही रिलायंस इंडस्ट्रीज की स्थापना की थी। मुकेश के छोटे भाई अनिल अम्बानी रिलायंस अनिल “धीरूभाई अम्बानी” समूह (ADAG) के प्रमुख हैं। यह समूह दूरसंचार, बिजली, प्राकृतिक संसाधनों, बुनियादी सुविधाओं और वित्तीय सेवाओं के क्षेत्र में सक्रीय है। धीरुभाई अम्बानी के निधन के बाद दोनों भाईयों में नहीं बनी और कहा-सुनी हुयी, जिसके बाद रिलायंस समूह दो भागों में बंट गया।

मुकेश अम्बानी का विवाह नीता अम्बानी से हुआ। नीता रिलायंस इंडस्ट्रीज के सामाजिक एवं धर्मार्थ कार्यो को देखती हैं। उनके तीन बच्चे हैं – आकाश, ईशा और अनंत।

मुकेश अम्बानी के परिवार का सम्बन्ध गुजरात के मोध बनिया समुदाय से है।

मुकेश अम्बानी का निवास – एंटीलिया

मुकेश अम्बानी अपने परिवार के साथ दक्षिण मुंबई स्थित अपने 27 मंजिली ईमारत ‘एंटीलिया’ में रहते हैं। इसे दुनिया का सबसे महंगा मकान माना जाता है। लगभग 600 कर्मचारियों का दल इस ईमारत की देख-रेख में जूता रहता है। इसके नाम अटलांटिक ओसियन स्थित इसी नाम के एक पौराणिक टापू पर रखा गया है।

सम्मान और पुरस्कार (Honours and Awards)

  • मुकेश अम्बानी को एन डी टी वी द्वारा साल 2007 का ‘बिज़नसमैंन ऑफ़ द ईयर चुना गया | 
  • यूनाईटेड स्टेटस-इंडिया बिज़नस कौंसिल (USIBC) ने वाशिंगटन में मुकेश अम्बानी को 2007 में “ग्लोबल विज़न” लीडरशिप अवार्ड दिया
  • नवम्बर 2004 में प्राईस वाटर हाउस कूपर्स द्वारा कराये गए एवं फाइनेंशियल टाइम्स लन्दन में प्रकाशित सर्वे में मुकेश अम्बानी को चार सीईओ में दूसरा स्थान मिला
  • अक्टूबर 2004 में टोटल टेलिकॉम ने दूरसंचार के क्षेत्र में सबसे प्रभावशाली व्यक्ति के तौर पर मुकेश अम्बानी को वर्ल्ड कम्युनिकेशन अवार्ड दिया
  • वौइस् एंड डाटा पत्रिका ने सितम्बर 2004 में उन्हें ‘टेलिकॉम मैंन ऑफ़ द ईयर’ चुना
  • फोर्च्यून पत्रिका के अगस्त 2004 अंक में सबसे शक्तिशाली कारोबारियों की एशिया पॉवर 25 सूचि में मुकेश को 13वां स्थान मिला
  • मई 2004 में एशिया सोसाइटी, वॉशिंगटन डी सी द्वारा उन्हें एशिया सोसाइटी लीडरशिप अवार्ड प्रदान किया गया
  • इंडिया टुडे के मार्च मई 2004 अंक में द पॉवर लिस्ट मई 2004 में मुकेश अम्बानी ने लगातार दूसरे साल पहला स्थान हासिल किया
  • सन 2007 में चित्रलेखा पर्सन ऑफ़ द ईयर -2007 पुरस्कार से सम्मानित किया गया

 

26 Dec 2016

Shaheed Bhagat Singh,Famous People

शहीद भगत सिंह की जीवनी



bhagat-singh-famous-peopleभगत सिंह की बात करे तो इन्हे कौन नही जानता है। तो इनके बारे में बता दे की वे बहुत ही प्रसिद्ध क्रान्तिकारी थे। जब भी भगत सिंह का नाम लिया जाता है तो दिल में इनके लिए अपार श्रद्धा उमड़ जाती है। जिनके महान कार्यों से आज भी भारत के नौजवान प्रेरित होते हैं और उनकी प्रेरणा के आधार पर कार्य करते है। जिनका नाम सुनते ही अंग्रेज अधिकारियों के पसीने छूट जाते थे। इन्होंने हँसते-हँसते भारत माँ की आजादी के लिये अपने प्राणों की कुर्बानी दे दी। भगत सिंह का नाम अमर शहीदों में सबसे प्रमुख रूप से लिया जाता है।

भगत सिंह के बारे में जानते है इनका जन्म 28 सितम्बर 1907 में पंजाब एक सिख परिवार में हुआ था। उनके जन्म के समय, उनके पिता जेल में थे। उनके पिता का नाम सरदार किशन सिंह था। और उनके माता का नाम विद्यावती कौर था। भगत सिंह के पांच भाई – जगत सिंह, कुलवीर सिंह, कुलतार सिंह, राजेन्द्र सिंह, रनवीर सिंह और तीन बहनें  – प्रकाश कौर, अमर कौर एवं शकुंतला कौर थीं ।

भगत सिंह का परिवार एक आर्य-समाजी सिख परिवार था। जो इनका परिवार शूरवीरता के लिए माना जाता था और राजनितिक रूप से सक्रीय था। भगतसिंह के जन्म के बाद उनकी दादी ने उनका नाम 'भागो वाला'रखा था। जिसका मतलब होता है 'अच्छे भाग्य वाला'। बाद में उन्हें 'भगतसिंह' कहा जाने लगा।  इनकी शिक्षा- नेशनल कॉलेज लाहौर, दयानन्द अंग्लो-वैदिक स्कूल से पूरी की। इन्होंने उच्च शिक्षा प्राप्त की। बचपन से ही भगत सिंह को देश भक्ति की भावना वाला माहौल मिला और इसी तरह इस भावना ने उनके जेहन में एक गहरी छाप छोड़ी।

भगत सिंह की रोचक बात जो अक्सर अपने सपने में देश की आजादी के बारे में सोचा करते थे। जिस इंसान के अंदर बचपन से ही इतनी देश भक्ति की भावना हो, उससे बड़ा देश भक्त कोई दूसरा हो ही नही सकता। भगत सिंह बचपन से अंग्रेज़ो की ज्यादती और बर्बरता के किस्से सुनते आ रहे थे। चाचा अजित सिंह भी एक सक्रीय स्वतंत्रता सेनानी थे।

भगत सिंह के बारे में बता दे की जब जलियांवाला बाग़ में हजारो निःशस्त्र लोगो को मारा गया। उस समय वो 12 साल के थे। वह 14 वर्ष की आयु से ही पंजाब की क्रांतिकारी संस्थाओं में कार्य करने लगे थे। वे बचपन से ही क्रांतिकारी पात्रो पर लिखी गयी किताबे पढ़ने मे भगत सिंह को रुचि थी। भगत सिंह को हिन्दी, पंजाबी, अंग्रेजी, और बंगाली भाषा का ज्ञान था।  एक आदर्श क्रांतिकारी के सारे गुण भगत सिंह मे थे। भगत सिंह ने कभी महात्मा गांधी के अहिंसा के तत्व को नहीं अपनाया, उनका यही मानना था की स्वतंत्रता पाने के लिए हिंसक बनना बहुत जरुरी है।

उसके बाद, भगत सिंह ने कुछ युवायो के साथ मिलकर क्रान्तिकारी अभियान की शुरुवात की, जिसका मुख्य उद्देश हिसक रूप से ब्रिटिश राज को खत्म करना था। 1923 में, पंजाब Hindi साहित्य सम्मलेन द्वारा आयोजित निबंध स्पर्धा जीती, जिसमे उन्होंने पंजाब की समस्याओ के बारे में लिखा था। उसके बाद, चन्द्रशेखर आजाद के दल मे शामिल होने के बाद कुछ ही समय मे भगत सिंह उनके दल के प्रमुख क्रांतिकारी बन गए।

लाला लाजपतराय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह और उनके दोस्तों ने स्कॉट सांडर्स को गोलियों से भून दिया। भगत सिंह और उनके साथियो ने लाला लाजपतराय की मौत का बदला लिया। 8 अप्रैल 1929 को भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त ने केन्द्रीय विधान सभा सत्र के दौरान विधान सभा भवन में बम फेंका। बम से किसी को भी नुकसान नहीं पहुचा। उन्होंने घटनास्थल से भागने के वजाए जानबूझ कर गिरफ़्तारी दे दी। अपनी सुनवाई के दौरान भगत सिंह ने किसी भी बचाव पक्ष के वकील को नियुक्त करने से मना कर दिया।

7 अक्टूबर 1930 को, भगत सिंह, सुख देव और राज गुरु को विशेष न्यायलय द्वारा मौत की सजा सुनाई गयी। 1931 में, भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को एक साथ फांसी दे दी गयी।

17 Dec 2016

Swami Vivekananda-Famous People

स्वामी विवेकानंद की जीवनी



स्वामी विवेकानंद के बारे में बता दे की इन्होने योग, राजयोग तथा ज्ञानयोग जैसे ग्रंथों की रचना करके युवा जगत को एक नई राह दिखाई है, जिसका प्रभाव लोगों पर हमेशा छाया रहेगा। स्वामी विवेकानंद के रोम-रोम राष्ट्रभक्ति बसा हुआ था। भारत राष्ट्र की प्रगति और उत्थान के लिए उन्होंने भी बहुत बड़ा योगदान दिया। इस युवा संन्यासी ने निजी मुक्ति को जीवन का लक्ष्य नहीं बनाया था, बल्कि करोड़ों देशवासियों के उत्थान को ही अपना जीवन लक्ष्य बनाया। 12 जनवरी को स्वामी विवेकानंद के नाम पर समर्पित है और इसे युवा दिवस के रूप में मनाया जाता है।

Swami-Vivekanandaस्वामी विवेकानंद की बात करे तो इनका जन्म 12 जनवरी 1863 को हुआ था। इनका जन्म कोलकात के एक धनि परिवार में हुआ था। उनके पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था। विश्वनाथ दत्त कोलकाता उच्च न्यायालय में अटॅार्नी-एट-लॉ (Attorney-at-law) थे। वे कलकत्ता उच्च न्यायालय में वकालत करते थे। वे एक विचारक, अति उदार, धार्मिक व सामाजिक विषयों में व्यवहारिक, रचनात्मक दृष्टिकोण और गरीबों के प्रति सहानुभूति रखने वाले व्यक्ति थे।

और इनके माता का नाम भुवनेश्वरी देवी था। वह एक सरल व अत्यंत धार्मिक महिला थीं। स्वामी विवेकानंद का नाम आते ही मन में श्रद्धा और स्फूर्ति दोनों का संचार होता है। श्रद्धा, क्योंकि उन्होंने भारत के नैतिक एवं जीवन मूल्यों को विश्व के कोने-कोने तक पहुंचाया। और स्फूर्ति, क्योंकि इन मूल्यों से जीवन को एक नई दिशा मिलती है। स्वामी विवेकानंद की प्राथमिक शिक्षा घर पर ही हुई। इसके अलावा, उन्हें कुश्ती, बॉक्सिंग, दौड़, घुड़दौड़, तैराकी, वयायाम के शौक थे।

1879 में, 16 साल की उम्र में उन्होंने कलकत्ता से एंट्रेंस पास किया। और  ग्रेजुएशन की, और बाद में ब्राह्मण समाज में शामिल हुए। इस समय तक इन्होने पाश्चात्य और भारतीय संस्कृति का विस्तृत अध्ययन कर लिया था। दार्शनिक विचारों के अध्ययन से उनके मन में सत्य को जगाने की इच्छा जागृत हुई। अपने गुरु से प्रेरित होकर उन्होंने सन्यासी जीवन बिताने की दीक्षा ली और स्वामी विवेकानंद के रूप में जाने गए।

स्वामी विवेकानंद सुंदर व आकर्षक व्यक्तित्व के होने के कारण लोग उन्हें देखते ही रह जाते थे। वो बहुत ही लोकप्रिय व्यक्ति थे। भारत में हिंदु धर्म को बढ़ाने में उनकी मुख्य भूमिका रही और भारत को औपनिवेशक बनाने में उनका मुख्य सहयोग रहा। 1893 में विश्व धर्म सम्मलेन में भारतीयों के हिंदु धर्म का प्रतिनिधित्व किया। विवेकानंद ने यूरोप, इंग्लैंड और यूनाइटेड स्टेट में हिंदु शास्त्र की 100 से भी अधिक सामाजिक और वैयक्तिक क्लासेस ली और भाषण भी दिए। भारत में विवेकानंद एक देशभक्त संत के नाम से जाने जाते है।

उनका बचपन का नाम नरेन्द्रनाथ दत्ता था। स्वामी विवेकानंद ने पैदल ही पूरे भारत की यात्रा की। 1893 में शिकागो धर्म संसद में गए। स्वामी विवेकानंद की राष्ट्रीय वेशभूषा पहने हुए देख स्रोताजन उन पर हँसे, परंतु जब उन्होंने स्रोताओं को संबोधित किया “अमेरिकावासी मेरे भाइयों और बहनों” वैसे ही  भवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। सभी वक्ताओं ने अपने-अपने धर्म को श्रेष्ट बताया। लेकिन  स्वामी विवेकानंद जी ने सभी धर्मों को समान बताया। और 1896 तक अमेरिका में रहे।


4 जुलाई, 1902 को स्वामी विवेकानंद का निधन हो गया। उस समय वह 39 वर्ष के थे।

➤➤स्वामी विवेकानंद एक संत व भारत के सच्चे देशभक्त थे। उन्होंने कई विषयों पर अपने बहुमूल्य विचार दिये हैं।


  • सफलता के तीन आवश्यक अंग हैं-शुद्धता,धैर्य और दृढ़ता। लेकिन, इन सबसे बढ़कर जो आवश्यक है। वह प्रेम है। 
  • उठो, जागो और तब तक रुको नहीं जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाये। 
  • जब तक जीना, तब तक सीखना' -- अनुभव ही जगत में सर्वश्रेष्ठ शिक्षक है। 
  • हमारी नैतिक प्रकृति जितनी उन्नत होती है, उतना ही उच्च हमारा प्रत्यक्ष अनुभव होता है, और उतनी ही हमारी इच्छा शक्ति अधिक बलवती होती है।
  • पवित्रता, दृढ़ता तथा उद्यम- ये तीनों गुण मैं एक साथ चाहता हूँ।





15 Dec 2016

Biography of Rabindranath Tagore-Famous People

रविंद्रनाथ टैगोर की जीवनी



रविंद्रनाथ टैगोर एक उत्कृष्ट संगीतकार, दार्शनिक, नाटककार, कथाकार, अभिनेता, समालोचक, चित्रकार और महान कवि थे। वे अकेले ऐसे भारतीय साहित्यकार हैं जिन्हें नोबेल पुरस्कार मिला है। अपनी कल्पना को जीवन के सब क्षेत्रों में अनंत अवतार देने की क्षमता रवीन्द्रनाथ टैगोर की खास विशेषता थी। उनके बारे में जितना कहा जाये, जितना लिखा जाए उतना कम है। 


Rabindranath-Tagore-Famous-Peopleरविंद्रनाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 में हुआ था। वे कोलकाता में एक अमीर परिवार में जन्म हुआ था। उनके पिता का नाम देवेन्द्रनाथ टैगोर था। वे ब्राह्मण समाज के वरिष्ठ नेता थे। वह बहुत ही सुलझे और सामाजिक जीवन जीने वाले व्यक्ति थे। और उनकी माता का नाम शारदा देवी था। वह बहुत ही सीधी महिला थी। ये देवेन्द्रनाथ टैगोर के सबसे छोटे पुत्र थे। इनके परिवार के लोग सुशिक्षित और कला-प्रेमी थे।

रविंद्रनाथ टैगोर बचपन से हीं बहुत प्रतिभाशाली थे। जब रविंद्रनाथ टैगोर बहुत छोटे थे तभी से इन्होंने कविता लिखना शुरु कर दिया था। उन्हें कला की कोई औपचारिक शिक्षा नहीं मिली थी। रविंद्रनाथ टैगोर ने अपनी शिक्षा घर में ही विभिन्न विषयों के निजी शिक्षकों के संरक्षण में ली। उनकी प्रारम्भिक पढ़ाई सेंट ज़ेवियर स्कूल में हुई। इनके पिता ने 1878 में उनका लंदन के विश्वविद्यालय में दाखिल कराया। उस समय वो केवल 17 वर्ष के थे। लेकिन वहाँ से पढ़ाई पूरी किए बिना हीं वापस लौट आए। 

उसके बाद उन्होंने घर की जिम्मेदारी सम्भाल ली। रविंद्रनाथ टैगोर को प्रकृति के विभिन्न स्वरूपों से बहुत प्यार था। साहित्य से उनको इतना प्यार था की देश विदेश में उन्हें गुरुदेव के नाम से संबोधित किया जाने लगा। उनकी ज्यादातर रचनाएँ आम आदमी पर केन्द्रित है। उनकी रचनाओं में सरलता है, अनूठापन है, और दिव्यता है। 

1883 में मृणालिनी देवी के साथ उनका विवाह हुआ। कोलकाता में शांतिनिकेतन के नाम से अपना खुद का स्कूल खोला। यही स्कूल बाद में कॉलेज़ बना, और उसके बाद एक विश्वविद्यालय बना। रविंद्रनाथ टैगोर ने 1877 तक अनेक रचनाएँ कर डाली थीं, जिनका प्रकाशन अनेक पत्रिकाओं में हुआ।  वे अभिनय और चित्रकला के भी बड़े शौकीन थे। दर्शनशास्त्र से भी इनका बड़ा लगाव था। 

रविंद्रनाथ टैगोर की सबसे लोकप्रिय रचना गीतांजलि थी, जिसके लिए 1913 में उन्हें नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया। वे विश्व के एकमात्र ऐसे साहित्यकार थे, जिनकी दो रचनाएं दो देशों का राष्ट्रगान बनी। भारत का राष्ट्र-गान जन गण मन, और बांग्लादेश का राष्ट्रीय गान आमार सोनार बांग्ला गुरुदेव की ही रचनाएं हैं। उन्होंने भारतीय सांस्कृति में नई जान फूंकने में अहम भूमिका निभाई थी। रविन्द्र संगीत, बाँग्ला संस्कृति का अभिन्न अंग है।

1919 में हुए जलियाँवाला कांड की रवीन्द्रनाथ ठाकुर ने निंदा करते हुए विरोध स्वरूप अपना ‘सर’ का खिताब वाइसराय को लौटा दिया था। 

रविंद्रनाथ टैगोर ने करीब 2,230 गीतों की रचना की है।

भारत के इस महान व्‍यक्ति ने 7 अगस्‍त 1941 को इस दुनियां को अलविदा कर दिया। 


4 Dec 2016

Biography of Mother Teresa-Famous People

मदर टेरेसा


Mother-Teresa-Famous-Peopleदर टेरेसा एक ऐसी महिला थीं जिन्‍होंंने अपना जीवन तिरस्कृत, असहाय, पीड़ित, निर्धन तथा कमजोर लोगों की सेवा में बिता दिया था। और एक नई दिशा दी जिससे वे अपने जीवन को कामयाब कर सके। दुनिया में हर कोई सिर्फ अपने लिए जीत है पर मदर टेरेसा जैसे लोग सिर्फ दुसरो के लिए जीते हैं। मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं जिनका ह्रदय संसार के तमाम दीन-दरिद्र, बीमार, असहाय और गरीबों के लिए धड़कता था। और इसी कारण उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उनके सेवा और भलाई में लगा दिया। मदर टेरेसा छोटी सी उम्र में ही गरीबों और असहायों की जिंदगी में प्यार की खुशबू भरी थी। 

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे में हुआ। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू था। निकोला बोयाजू एक साधारण व्यवसायी थे। जो धार्मिक भी थे और येशु के अनुयायी भी थे। और उनकी माता का नाम द्रना बोयाजू था। वह अपने भाई और बहनों में सबसे छोटी थीं।  

मदर टेरेसा जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद उनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी उनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी। वह एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढाई के साथ-साथ, उन्हें गाना बेहद पसंद था। मदर टेरेसा ने अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी की। मदर टेरेसा की आवाज सुरीली थी। वे चर्च में अपनी माँ और बहन के साथ येशु के महिमा के गाने गाया करती थी। 

मदर टेरेसा जब 12 वर्ष की थीं तब ही उन्‍होंने फैसला किया कि वह अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगायेगी। इसके बाद 18 साल की उम्र में उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। उसके बाद वह आयरलैंड चली गई। वहाँ उन्होंने अंग्रेजी सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरूरी था की लोरेटो की सिस्टर्स इसी माध्यम में भारत के बच्चों को पढ़ाती थी। 

मदर टेरेसा तीन अन्य सिस्टरों के साथ आयरलैंड से एक जहाज में बैठकर 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पहुंची। मदर टेरेसा के अंदर अपार प्रेम था। जो किसी विशेष व्यक्ति के लिए नही बल्कि हर उस इंसान के लिए था जो गरीब, लाचार, बीमार, जीवन में अकेला था। वह बहुत ही अच्छी अनुशासित शिक्षिका थीं। और विद्यार्थी उन्हें बहुत प्यार करते थे। 

उसके बाद वह सेंट मैरी हाईस्कूल कलकत्ता में अध्यापिका बन गयीं। मदर टेरेसा के अनुसार, इस कार्य में शुरूआती दौर बहुत कठिन था। वह लोरेटो छोड़ चुकी थीं इसलिए उनके पास कोई आमदनी नहीं थी – उनको अपना पेट भरने तक के लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ी। जीवन के इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर उनके मन में बहुत उथल-पुथल हुई, अकेलेपन का एहसास हुआ और लोरेटो की सुख-सुविधाओं में वापस लौट जाने का खयाल भी आया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इसी दौरान 1948 में उन्होंने वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और उसके बाद मिशनरीज ऑफ़ चौरिटी की स्थापना की।

7 अक्टूबर 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। उन्होंने बूढ़ों, लाचार की संस्था के साथ काम किया और मरीजो की देखभाल की। उन्होंने मरीजों के घावों को धोया, उनकी मरहम-पट्टी की और उनको दवाइयां दी। उनकी मेहनत और कार्यो को देख लोगो का ध्यान उनकी तरफ खिंचा और इसमें भारत के प्रधानमंत्री भी शामिल थे। उन्होंने मदर टेरेसा के कार्यो की सराहना की और साथ दिया। इसी के साथ, उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया। 

उनकी संस्था का एक ही उद्देश्य है की वे दुनिया के गरीब से गरीब इंसान की भी मुफ्त में सेवा करना चाहते है। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल ह्रदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले थे। 

बढ़ती उम्र के साथ मदर टेरेसा की सेहत बिगड़ने लगी थी। 1983 में 73 वर्ष की आयु में उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा। वह उस समय रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गईं थी। उसके बाद 1989 में उन्हें दूसरी बार दिल का दौरा आया। इसके बाद उनकी सेहत लगातार गिरती रही। 

13 मार्च 1997 को उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के मुखिया का पद छोड़ दिया। और 5 सितम्बर, 1997 को उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में कार्यरत थीं। मानव सेवा और ग़रीबों की देखभाल करने वाली मदर टेरेसा को पोप जॉन पाल द्वितीय ने 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में “धन्य” घोषित किया।

मदर टेरेसा को बहुत से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 
  • भारत सरकार ने उन्‍हें वर्ष 1962 में पद्मश्री के सम्‍मान से नवाजा गया था। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें वर्ष 1985 में मेडल ऑफ फ्रीडम 1985 से नवाजा था। 
  • उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्‍मानित किया गया था। 
मदर टेरेसा के अनमोल विचार
  • यदि आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो कम से कम एक को ही करवाएं।
  • यदि हमारे बीच कोई शांति नहीं है, तो वह इसलिए क्योंकि हम भूल गए हैं कि हम एक दूसरे से संबंधित हैं।
  • अकेलापन और अवांछित रहने की भावना सबसे भयानक ग़रीबी है।
  • यदि आप प्रेम संदेश सुनना चाहते हैं तो पहले उसे खुद भेजें। जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दिए में तेल डालते रहना पड़ता है।
  • प्रेम हर मौसम में होने वाला फल है, और हर व्यक्ति के पहुंच के अन्दर है।
  • प्रेम की भूख को मिटाना, रोटी की भूख मिटाने से कहीं ज्यादा मुश्किल है।
  • यदि आप चाहते हैं कि एक प्रेम संदेश सुना जाय तो पहले उसे भेजें। जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दिए में तेल डालते रहना पड़ता है।
  • खूबसूरत लोग हमेशा अच्छे नहीं होते। लेकिन अच्छे लोग हमेशा खूबसूरत होते हैं।
  • मैं चाहती हूँ कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित रहें। क्या आप अपने पड़ोसी को जानते हो?

24 Nov 2016

Biography of Indira Gandhi-Famous People

इंदिरा गाँधी



Indira-Gandhi-Famous-Peopleइंदिरा गाँधी, भारत की तीसरी प्रधानमंत्री थी। वह एक अकेली प्रथम महिला थी जो भारत की प्रधानमंत्री बनी। इंदिरा गाँधी का बचपन का नाम इंदिरा प्रियदर्शनी था। इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को  इलाहाबाद में हुआ था। इलाहाबाद उत्तर प्रदेश में एक शहर है। उनके पिता का नाम जवाहरलाल नेहरु था। जो भारत के प्रथम प्रधानमंत्री और स्वतंत्रता सेनानी नेता थे। उनकी माता का नाम कमला नेहरु था।  और उनके दादा का नाम पंडित मोतीलाल नेहरु था। जवाहरलाल और मोतीलाल दोनों सफल वकील थे और दोनों ने ही स्वतंत्रता संग्राम में बहुत महत्वपूर्ण योगदान दिया था। इंदिरा गाँधी का नाम उनके दादा पंडित मोतीलाल नेहरु ने रखा था। 

इंदिरा गाँधी का जन्म ऐसे परिवार में हुआ था जो आर्थिक एवं बौद्धिक दोनों दृष्टि से काफी संपन्न था। वह जवाहरलाल नेहरु जी की एकमात्र संतान थी, जो भारत की आज़ादी के बाद सर्व प्रथम प्रधान मंत्री बनी और वह भी एक महिला। बचपन मे ही इंदिरा गाँधी के चेहरे पर एक अलग सा नूर तथा आँखों में एक गहरी चमक थी। बचपन से ही इनका झुकाव राजनीति की तरफ था। वे बचपन से ही बहुत ही चालाक और पढाई में बहुत ही बुद्धिमान थी। इन्दिरा गांधी ने अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के पश्चात, शान्तिनिकेतन में रवीन्द्रनाथ टैगोर द्वारा निर्मित विश्व-भारती विश्वविद्यालय में प्रवेश लिया। उसके बाद आगे की शिक्षा पाने के लिए वह इंग्लैंड चली गयी।

अपनी शिक्षा पूरी करने के बाद वे भारत लौटी और वे भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन में शामिल हो गयी। अपनी छोटी आयु में ही इंदिरा गाँधी ‘अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस’ की सदस्य बन गयी। 1936 में, उनकी माता जी कमला नेहरु की मृत्यु के बाद उन्हें जो भी आगे की शिक्षा मिली अपने पिता से मिली और पॉलिटिक्स का ज्ञान भी उस समय के कुछ महान नेताओं से मिला। 1942 में इंदिरा गांधी का प्रेम विवाह फिरोज गांधी से हुआ। पारसी युवक फिरोज गांधी से इंदिरा की मुलाकात ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यावय में ही पढ़ाई के दौरान हुई थी जो उस समय लंदन स्कूल ऑफ इकॉनॉमिक्स में अध्ययन कर रहे थे। शादी के बाद 1944 में उन्होंने राजीव गांधी और इसके दो साल के बाद संजय गांधी को जन्म दिया। और 8 सितंबर 1960 को जब इंदिरा अपने पिता के साथ एक विदेश दौरे पर गई हुईं थीं तब फिरोज गांधी की मृत्यु हो गई।   

इंदिरा गाँधी को 1959 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का अध्यक्ष चुना गया। उनकी पिता की मृत्यु के बाद उन्हें बहुत बड़ा दुख पहुंचा। अपने पिता की मौत के बाद इंदिरा गांधी को सुचना और प्रसारण मंत्री बनाया गया। उसके बाद लाल बहादुर शाष्त्री प्रधानमंत्री बने, और 1966 में शाश्त्री की मौत के बाद उन्हें कांग्रेस ने प्रधानमंत्री पद के लिए चुना। 24 जनवरी, 1966 को इंदिरा गाँधी ने प्रधानमंत्री पद का शपथ ग्रहण किया। ये भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री बनी जो की भारत वर्ष की हर महिला के लिए एक बहुत गौरव की बात थी। इंदिरा गाँधी लगातार 3 बार भारत गणराज्य की प्रधानमन्त्री थी , और उसके बाद चौथी बार में 1980 से लेकर 1984 में उनकी राजनैतिक हत्या तक भारत की प्रधानमंत्री रहीं। 1984 में उनके कुच्छ सिख अंगरक्षकों नें उनकी हत्या कर दी।

इंदिरा गांधी प्रधानमंत्री मंत्री बनने के बाद एक अच्छे नेता बनकर उभरी। इंदिरा गाँधी ने गरीबो और पिछड़े वर्गों के उद्धार के लिए 20-सूत्रीय कार्यक्रम बनाया। बैंको का राष्ट्रीयकरण किया। अनाज के क्षेत्र में भारत को आत्म निर्भय बनाया। इन्होंने वातावरण के प्रदूषण से मानव जाति को बचाने का भरसक प्रयास किया। उस समय कई कार्यक्रमों और किसानो के लिए प्रोग्राम तैयार किये जो सफल भी हुए। सन 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया।

जुलाई 1969 में इंदिरा ने बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया। इंदिरा गांधी मार्च 1971 पांचवें आम चुनाव के दौरान “गरीबी हटाओ” (गरीबी खत्म करने) के नारे पर जमकर प्रचार किया और एक अभूतपूर्व दो-तिहाई बहुमत से जीता। उसके नेतृत्व के गुणों को बांग्लादेश की मुक्ति में हुई है। 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध हुआ जिसमे पाकिस्तानी सेना ने समपर्ण कर दिया। पाकिस्तान पर भारत की जीत के बाद इंदिरा गांधी काफी लोकप्रिय हुई। और इंदिरा गांधी की वजह से बंगलादेश एक स्वतंत्र राष्ट्र बना। इंदिरा नें पाकिस्तानी राष्ट्रपति को 7 दिन के शिखर बैठक के लिए शिमला आमंत्रित किया। आखिर में दोनों नेताओं नें समझौता किया और हस्ताक्षर किये, शांतिपूर्ण तरीके से कश्मीर के मसले को सुलझाने की।

16 वर्ष तक देश की प्रधानमंत्री रहीं, इंदिरा गांधी के शासनकाल में कई उतार-चढ़ाव आए। लेकिन 1975 में आपातकाल 1984 में सिख दंगा जैसे कई मुद्दों पर इंदिरा गांधी को भारी विरोध-प्रदर्शन और तीखी आलोचनाएं भी झेलनी पड़ी थी। 31 अक्‍तूबर 1984 को उन्हें अपने अंगरक्षक की ही गोली का शिकार होना पड़ा और वह देश की एकता और अखंडता के लिए कुर्बान हो गईं। 1980 में उसके छोटे बेटे संजय गांधी एक विमान दुर्घटना में मृत्यु हो गई। संजय गांधी की मृत्यु के बाद राजीव गांधी को नेता के लिए चुना गया। 

19 Nov 2016

Biography of Mahatma Gandhi-Famous People

महात्मा गांधी जीवनी



Mahatma-Gandhiमहात्मा गांधी का जन्म 2 अक्तूबर 1869 में पोरबंदर शहर में हुआ था। पोरबंदर शहर गुजरात राज्य में परता है। उनका पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। महात्मा गांधी एक प्रमुख भारतीय राजनीतिक नेता थे। जो भारत की आजादी के लिए अभियान चलाया था। भारत में, वह हमारे राष्ट्र पिता 'के रूप में जाने जाते हैं। वो ज्यादातर महात्मा गांधी और बापू के नाम से लोकप्रिय हैं। अहिंसा और सत्याग्रह के संघर्ष से उन्होंने भारत को अंग्रेजो से स्वतंत्रता दिलाई। उनका ये काम पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गया है। वो हमेशा कहते थे बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, बुरा मत कहो, और उनका मानना था की सच्चाई कभी नहीं हारती। हर साल 2 अक्टूबर को उनका जन्म दिन भारत में गांधी जयंती के रूप में मनाया जाता है। 

महात्मा गांधी के पिता का नाम करमचंद गांधी था। ब्रिटिश राज के समय काठियावाड़ की एक छोटी सी रियासत (पोरबंदर) के दीवान अर्थात् प्रधान मन्त्री थे। और उनकी माता का नाम पुतलीबाई थी। महात्मा गांधी ने शुरुवाती शिक्षा पोरबंदर शहर में हुई थी। उसके बाद में लंदन में विश्वविद्यालय से कानून की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद वह भारत में आकर अपनी वकालत की अभ्यास करने लगे, लेकिन सफल नहीं हुए। उसी समय दक्षिण अफ्रीका से उन्हें एक कंपनी में क़ानूनी सलाहकार के रूप में काम मिला। उसके बाद वो दक्षिण अफ्रीका चले गए। दक्षिण अफ्रीका में महात्मा गांधी को भारतीयों पर भेदभाव का सामना करना पड़ा। 

आरम्भ में उन्हें प्रथम श्रेणी कोच की वैध टिकट होने के बाद तीसरी श्रेणी के डिब्बे में जाने से इन्कार करने के लिए ट्रेन से बाहर फेंक दिया गया था। उन्होंने अपनी इस यात्रा में कई कठिनाइयों का सामना किया। वहाँ भारतीयों के मुलभुत अधिकारों के लिए लड़ते हुए कई बार जेल भी गए। महात्मा गांधीजी लगभग 20 साल तक दक्षिण अफ्रीका में थे। ये सारी घटनाएँ गान्धी के जीवन में एक मोड़ बन गईं। दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों पर हो रहे अन्याय को देखते हुए गान्धी ने अंग्रेजी साम्राज्य के अन्तर्गत अपने देशवासियों के सम्मान तथा देश में स्वयं अपनी स्थिति के लिए प्रश्न उठाये। वहाँ उन्होंने सरकार विरूद्ध असहयोग आंदोलन संगठित किया। जिस पर गाँधीजी पूरी जिंदगी चले। 

महात्मा गांधी का विवाह 1883 में हुआ था। 13 साल की आयु पूर्ण करते ही उनका विवाह 14 साल की कस्तूरबा माखनजी से कर दिया गया। यह विवाह उनके माता पिता द्वारा तय किया गया था। उस समय उस क्षेत्र में बाल विवाह प्रचलित था। मोहनदास और कस्तूरबा के चार सन्तान हुईं, जो सभी पुत्र थे। हरीलाल गान्धी 1888 में, मणिलाल गान्धी 1892 में, रामदास गान्धी 1897 में और देवदास गांधी 1900 में जन्मे। 1885 में इनकी पहली सन्तान ने जन्म लिया। लेकिन वह केवल कुछ दिन ही जीवित रही। और इसी साल उनके पिता करमचन्द गन्धी भी चल बसे। 1891 में उनकी पत्नी पुतलीबाई का निधन हो गया। 

महात्मा गांधी भारत के स्वतंत्रता आंदोलन के निदेशक थे। उन्ही की प्रेरणा से 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हो सकी। अपनी अदभुत आध्यात्मिक शक्ति से मानव जीवन के शाश्वत मूल्यों को उदभाषित करने वाले, विश्व इतिहास के महान तथा अमर नायक महात्मा गांधी आजीवन सत्य, अहिंसा और प्रेम का पथ प्रदर्शित करते रहे। 1901 में कलकत्ता के कांग्रेस अधिवेशन में भाग लिया तथा बम्बई में वकालत का दफ्तर खोला। उस समय के कांग्रेस दल के प्रमुख भारतीय नेता गोपाल कृष्ण गोखले, जो एक सम्मानित नेता थे। गांधी की पहली बड़ी उपलब्धि 1918 में चम्पारन और खेड़ा सत्याग्रह, आंदोलन में मिली। 

1920 में असहयोग आंदोलन शुरु किया। गांधी जी ने असहयोग, अहिंसा तथा शांतिपूर्ण प्रतिकार को अंग्रेजों के खिलाफ़ शस्त्र के रूप में उपयोग किया। पंजाब में अंग्रेजी फौजों द्वारा भारतीयों पर जलियावांला नरसंहार जिसे अमृतसर नरसंहार के नाम से भी जाना जाता है, देश को भारी आघात पहुंचाया जिससे जनता में क्रोध और हिंसा की ज्वाला भड़क उठी। 

1921 में महात्मा गांधी जो भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस.का कार्यकारी अधिकारी नियुक्त किया गया। असहयोग को दूर-दूर से अपील और सफलता मिली जिससे समाज के सभी वर्गों की जनता में जोश और भागीदारी बढ गई। फिर जैसे ही यह आंदोलन अपने शीर्ष पर पहुंचा वैसे फरवरी 1922 में इसका अंत चौरी-चोरा, उत्तरप्रदेश में भयानक द्वेष के रूप में अंत हुआ। 10 मार्च, 1922 को महात्मा गांधी को गिरफ्तार किया गया। महात्मा गांधी पर राजद्रोह के लिए मुकदमा चलाया गया जिसमें उन्हें छह साल कैद की सजा सुनाकर जैल भेद दिया गया। 

1930 में सविनय अवज्ञा आदोलन शुरु हुआ। नमक के उपर कर और नमक बनानेकी सरकार एकाधिकार रद्द की जाये। ऐसी व्हाइसरॉय से मांग की, व्हाइसरॉय ने उस मांग को नहीं माना तब गांधीजी ने नमक का कानून तोड़कर सत्याग्रह करने की ठान ली। 1931 में राष्ट्रिय सभे के प्रतिनिधि बनकर गांधीजी दूसरी गोलमेज परिषद को उपस्थित थे। 1932 में उन्होंने अखिल भारतीय हरिजन संघ की स्थापना की। 1933 में उन्होंने ‘हरिजन’ नाम का अखबार शुरु किया। 1942 में चले जाव आंदोलन शुरु हुआ। ‘करेगे या मरेगे’ ये नया मंत्र गांधीजी ने लोगों को दिया। द्वितीय विश्वयुध्द में महात्मा गांधीजी ने अपने देशवासियों से ब्रिटेन के लिये न लड़ने का आग्रह किया था। जिसके लिए उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया था। युद्ध के उपरान्त उन्होंने पुन: स्वतंत्रता आदोलन की बागडोर संभाल ली। अंततः 1947 में हमारे देश को स्वतंत्रता प्राप्त हो गई। और 30 जनवरी 1948 में नथुराम गोडसे ने गोली मारकर उनकी हत्या की। 


15 Nov 2016

Pandit Jawaharlal Nehru-Famous People

पंडित जवाहरलाल नेहरु पर हिंदी निबंध



Pandit-Jawaharlal-Nehruपंडित जवाहरलाल नेहरू भारत के आजादी के लिए लड़ने वाले और संघर्ष करने वाले मुख्य महापुरुषों में से एक थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू का जन्म इलाहाबाद में 14 नवम्बर सन 1889 को हुआ था। उनके पिता का नाम मोतीलाल नेहरु था। मोतीलाल नेहरु एक प्रसिद्ध वकील थे। जो जटिल से जटिल मामलों को भी बड़ी सरलता से हल कर देते थे। और उनके माता का नाम स्वरूपरानी नेहरु था।  

पंडित जवाहरलाल नेहरू की आरम्भिक शिक्षा घर पर ही हुई। पंडित जवाहरलाल नेहरू के मुन्शी मुबारक अली ने इनके मन में इतिहास और स्वतंत्रता संग्राम के प्रति जिज्ञासा पैदा कर दी। यही कारण है की उनके मन में बचपन से ही दासता के प्रति विद्रोह की भावना थी। और उच्च शिक्षा के लिए नेहरू जी को इंग्लैंड भेजा गया। वहां रहकर उन्होंने अनेक पुस्तकों का अध्ययन किया। वकालत की शिक्षा पूरी करने के बाद वे भारत लौट आये और इलाहबाद हाईकोर्ट में वकालत करने लगे। भारत लौटने के चार वर्ष बाद मार्च 1916 में नेहरू का विवाह कमला कौल के साथ हुआ। 

जवाहरलाल नेहरू स्वतंत्र भारत के प्रथम प्रधानमंत्री थे। पंडित जवाहरलाल नेहरू एक कुशल राजनीतिज्ञ के साथ-साथ उच्च कोटि के विचारक भी थे। उनकी राजनीति स्वच्छ और अच्छी थी। राजनीति और प्रशासन की समस्याओ से घिरे रहने के बावजूद वे खेल,संगीत,कला आदि के लिए समय निकाल लेते थे। बच्चो के तो वे अति प्रिय थे। आज भी वे बच्चो के बीच ‘चाचा नेहरू’ के नाम से लोकप्रिय है। उनके जन्मदिन 14 नवम्बर को हमारा देश ‘बाल दिवस’ के रूप में मनाता है। 

जवाहरलाल नेहरु जी ने कॉलेज की शिक्षा ट्रिनिटी कॉलेज, लंदन से प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने अपनी लॉ की डिग्री कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से पूरी की। जब वे कैम्ब्रिज में पढाई कर रहे थे तो वहाँ उन्हे विपिन्न चन्द्र पाल, लाला लाजपत राय और गोपाल कृष्ण गोखले जैसे देशभक्तों को सुनने का अवसर प्राप्त हुआ। जवाहरलाल नेहरु गोपाल कृष्ण गोखले से अत्यधिक प्रभावित हुए।

मोतीलाल जी के घर में कभी भी किसी प्रकार की घार्मिक कट्टरता और भेद-भाव नही बरता जाता था। नेहरु परिवार में कश्मीरी त्योहार भी बड़े धूम-धाम से मनाया जाता था। जवाहर को मुस्लिम त्योहार भी बहुत अच्छे लगते थे। जवाहरलाल बालसुलभ जिज्ञासा और कौतूहल से धार्मिक रस्मों और त्योहारों को देखा करते थे। धार्मिक रस्मों और आकर्षण के बावजूद जवाहर के मन में धार्मिक भावनाएं विशवास न जगा सकी थीं। 

जवाहरलाल नेहरू को मुस्लिम त्योहार भी बहुत अच्छे लगते थे। बचपन में जवाहर का अधिक समय उनके यहाँ के मुंशी मुबारक अली के साथ गुजरता था। मुंशी जी गदर के सूरमाओं और तात्याटोपे तथा रानी लक्ष्मीबाई की कहानियाँ सुनाया करते थे। जवाहरलाल नेहरू को वे अलिफलैला की और दूसरी कहानियाँ भी सुनाते थे। 

पंडित जवाहर लाल नेहरू एक महान व्यक्ति, नेता, राजनीतिज्ञ, लेखक और वक्ता थे। वह बच्चों को बहुत प्यार करते थे। और गरीब लोगों के एक महान दोस्त थे। वह हमेशा भारत के लोगों के सच्चे सेवक के रूप में खुद को समझा। उन्होंने कहा कि इस देश को सफल बनाने के लिए दिन और रात के माध्यम से सभी कड़ी मेहनत की। भारत में बहुत से लोग महान पैदा हुआ था और चाचा नेहरू उनमें से एक था। वह महान दृष्टि, ईमानदारी, कठिन परिश्रम, देशभक्ति और बौद्धिक अधिकार होने के व्यक्ति थे।

पंडित जवाहरलाल नेहरू ने महात्मा गांधी के साथ देश की आजादी के आंदोलन में शामिल हो गए और कई बार जेल गए। 1919 में  जब वे महात्मा गांधी के संपर्क में आए तब से सही मायने में राजनीति में प्रवेश किये। उस समय महात्मा गांधी ने रॉलेट अधिनियम के खिलाफ एक अभियान शुरू किया था। नेहरू, महात्मा गांधी के सक्रिय लेकिन शांतिपूर्ण, सविनय अवज्ञा आंदोलन के प्रति बहुत आकर्षित हुए थे। जवाहरलाल और मोतीलाल नेहरू ने पश्चिमी कपडों और महंगी संपत्ति का त्याग कर दिया। वे अब खादी कुर्ता और गाँधी टोपी पहनने लगे।

1919 में जलियांवाला बाग में अंग्रेज अफसर जनरल डायर द्वारा स्वतंत्रता सेनानियों की नृशंस हत्या की गयी। इससे पूरे देश में क्रोध की ज्वाला धधक उठी। 1920 में गांधीजी द्वारा असहयोग आन्दोलन चलाया गया। पंडित जवाहरलाल नेहरू भी पूर्ण मनोयोग से स्वतंत्रता संग्राम में कूद पड़े। जवाहर लाल नेहरू ने 1920-1922 में असहयोग आंदोलन में सक्रिय हिस्सा लिया और इस दौरान पहली बार गिरफ्तार किए गए। 

सन् 1947 में भारत को आजादी मिलने पर वे स्वतंत्र भारत के पहले प्रधानमंत्री बने। संसदीय सरकार की स्थापना और विदेशी मामलों में ‘गुटनिरपेक्ष’ नीतियों की शुरूवात जवाहरलाल नेहरु द्वारा  हुई। पंडित जवाहरलाल नेहरू 27 मई, 1964 को निधन हो गया।