4 Dec 2016

Biography of Mother Teresa-Famous People

मदर टेरेसा


Mother-Teresa-Famous-Peopleदर टेरेसा एक ऐसी महिला थीं जिन्‍होंंने अपना जीवन तिरस्कृत, असहाय, पीड़ित, निर्धन तथा कमजोर लोगों की सेवा में बिता दिया था। और एक नई दिशा दी जिससे वे अपने जीवन को कामयाब कर सके। दुनिया में हर कोई सिर्फ अपने लिए जीत है पर मदर टेरेसा जैसे लोग सिर्फ दुसरो के लिए जीते हैं। मदर टेरेसा एक ऐसी महान आत्मा थीं जिनका ह्रदय संसार के तमाम दीन-दरिद्र, बीमार, असहाय और गरीबों के लिए धड़कता था। और इसी कारण उन्होंने अपना सम्पूर्ण जीवन उनके सेवा और भलाई में लगा दिया। मदर टेरेसा छोटी सी उम्र में ही गरीबों और असहायों की जिंदगी में प्यार की खुशबू भरी थी। 

मदर टेरेसा का असली नाम अग्नेसे गोंकशे बोजशियु था। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त, 1910 को स्कॉप्जे में हुआ। उनके पिता का नाम निकोला बोयाजू था। निकोला बोयाजू एक साधारण व्यवसायी थे। जो धार्मिक भी थे और येशु के अनुयायी भी थे। और उनकी माता का नाम द्रना बोयाजू था। वह अपने भाई और बहनों में सबसे छोटी थीं।  

मदर टेरेसा जब वह मात्र आठ साल की थीं तभी उनके पिता का निधन हो गया, जिसके बाद उनके लालन-पालन की सारी जिम्मेदारी उनकी माता द्राना बोयाजू के ऊपर आ गयी। वह एक सुन्दर, अध्ययनशील एवं परिश्रमी लड़की थीं। पढाई के साथ-साथ, उन्हें गाना बेहद पसंद था। मदर टेरेसा ने अपने स्कूल की पढ़ाई पूरी की। मदर टेरेसा की आवाज सुरीली थी। वे चर्च में अपनी माँ और बहन के साथ येशु के महिमा के गाने गाया करती थी। 

मदर टेरेसा जब 12 वर्ष की थीं तब ही उन्‍होंने फैसला किया कि वह अपना सारा जीवन मानव सेवा में लगायेगी। इसके बाद 18 साल की उम्र में उन्होंने ‘सिस्टर्स ऑफ़ लोरेटो’ में शामिल होने का फैसला ले लिया। उसके बाद वह आयरलैंड चली गई। वहाँ उन्होंने अंग्रेजी सीखी। अंग्रेजी सीखना इसलिए जरूरी था की लोरेटो की सिस्टर्स इसी माध्यम में भारत के बच्चों को पढ़ाती थी। 

मदर टेरेसा तीन अन्य सिस्टरों के साथ आयरलैंड से एक जहाज में बैठकर 6 जनवरी, 1929 को कोलकाता में ‘लोरेटो कॉन्वेंट’ पहुंची। मदर टेरेसा के अंदर अपार प्रेम था। जो किसी विशेष व्यक्ति के लिए नही बल्कि हर उस इंसान के लिए था जो गरीब, लाचार, बीमार, जीवन में अकेला था। वह बहुत ही अच्छी अनुशासित शिक्षिका थीं। और विद्यार्थी उन्हें बहुत प्यार करते थे। 

उसके बाद वह सेंट मैरी हाईस्कूल कलकत्ता में अध्यापिका बन गयीं। मदर टेरेसा के अनुसार, इस कार्य में शुरूआती दौर बहुत कठिन था। वह लोरेटो छोड़ चुकी थीं इसलिए उनके पास कोई आमदनी नहीं थी – उनको अपना पेट भरने तक के लिए दूसरों की मदद लेनी पड़ी। जीवन के इस महत्वपूर्ण पड़ाव पर उनके मन में बहुत उथल-पुथल हुई, अकेलेपन का एहसास हुआ और लोरेटो की सुख-सुविधाओं में वापस लौट जाने का खयाल भी आया लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। इसी दौरान 1948 में उन्होंने वहां के बच्चों को पढ़ाने के लिए एक स्कूल खोला और उसके बाद मिशनरीज ऑफ़ चौरिटी की स्थापना की।

7 अक्टूबर 1950 को रोमन कैथोलिक चर्च ने मान्यता दी। उन्होंने बूढ़ों, लाचार की संस्था के साथ काम किया और मरीजो की देखभाल की। उन्होंने मरीजों के घावों को धोया, उनकी मरहम-पट्टी की और उनको दवाइयां दी। उनकी मेहनत और कार्यो को देख लोगो का ध्यान उनकी तरफ खिंचा और इसमें भारत के प्रधानमंत्री भी शामिल थे। उन्होंने मदर टेरेसा के कार्यो की सराहना की और साथ दिया। इसी के साथ, उन्होंने पारंपरिक वस्त्रों को त्यागकर नीली किनारी वाली साड़ी पहनने का फैसला किया। 

उनकी संस्था का एक ही उद्देश्य है की वे दुनिया के गरीब से गरीब इंसान की भी मुफ्त में सेवा करना चाहते है। मदर टेरेसा ने ‘निर्मल ह्रदय’ और ‘निर्मला शिशु भवन’ के नाम से आश्रम खोले थे। 

बढ़ती उम्र के साथ मदर टेरेसा की सेहत बिगड़ने लगी थी। 1983 में 73 वर्ष की आयु में उन्हें पहली बार दिल का दौरा पड़ा। वह उस समय रोम में पॉप जॉन पॉल द्वितीय से मिलने के लिए गईं थी। उसके बाद 1989 में उन्हें दूसरी बार दिल का दौरा आया। इसके बाद उनकी सेहत लगातार गिरती रही। 

13 मार्च 1997 को उन्होंने ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ के मुखिया का पद छोड़ दिया। और 5 सितम्बर, 1997 को उनकी मौत हो गई। उनकी मौत के समय तक ‘मिशनरीज ऑफ चैरिटी’ में 4000 सिस्टर और 300 अन्य सहयोगी संस्थाएं काम कर रही थीं जो विश्व के 123 देशों में समाज सेवा में कार्यरत थीं। मानव सेवा और ग़रीबों की देखभाल करने वाली मदर टेरेसा को पोप जॉन पाल द्वितीय ने 19 अक्टूबर, 2003 को रोम में “धन्य” घोषित किया।

मदर टेरेसा को बहुत से पुरस्कारों से सम्मानित किया गया है। 
  • भारत सरकार ने उन्‍हें वर्ष 1962 में पद्मश्री के सम्‍मान से नवाजा गया था। 
  • संयुक्त राज्य अमेरिका ने उन्हें वर्ष 1985 में मेडल ऑफ फ्रीडम 1985 से नवाजा था। 
  • उन्हें 1979 में नोबेल शांति पुरस्कार और 1980 में भारत का सर्वोच्च नागरिक सम्मान भारत रत्न से सम्‍मानित किया गया था। 
मदर टेरेसा के अनमोल विचार
  • यदि आप एक सौ लोगों को भोजन नहीं करा सकते हैं, तो कम से कम एक को ही करवाएं।
  • यदि हमारे बीच कोई शांति नहीं है, तो वह इसलिए क्योंकि हम भूल गए हैं कि हम एक दूसरे से संबंधित हैं।
  • अकेलापन और अवांछित रहने की भावना सबसे भयानक ग़रीबी है।
  • यदि आप प्रेम संदेश सुनना चाहते हैं तो पहले उसे खुद भेजें। जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दिए में तेल डालते रहना पड़ता है।
  • प्रेम हर मौसम में होने वाला फल है, और हर व्यक्ति के पहुंच के अन्दर है।
  • प्रेम की भूख को मिटाना, रोटी की भूख मिटाने से कहीं ज्यादा मुश्किल है।
  • यदि आप चाहते हैं कि एक प्रेम संदेश सुना जाय तो पहले उसे भेजें। जैसे एक चिराग को जलाए रखने के लिए हमें दिए में तेल डालते रहना पड़ता है।
  • खूबसूरत लोग हमेशा अच्छे नहीं होते। लेकिन अच्छे लोग हमेशा खूबसूरत होते हैं।
  • मैं चाहती हूँ कि आप अपने पड़ोसी के बारे में चिंतित रहें। क्या आप अपने पड़ोसी को जानते हो?