28 Sept 2016

Tourist Place | Mumbai, Haji Ali Dargah

हाजी अली दरगाह



Mumbai-Haji-Ali-Dargah
हाजी अली दरगाह भारत के महाराष्ट्र राज्य में स्थित है। हाजी अली के बारे में बता दे की यह एक धनी मुस्लिम व्यापारी, जो हाजी अली शाह बुखारी नामक एक संत द्वारा बनाया गया था। उन्होंने कहा कि मक्का की तीर्थयात्रा पर तैयार करने से पहले सभी सांसारिक सुखों का त्याग दिया। हाजी अली दरगाह 1431 ईस्वी में उनके सम्मान में बनाया गया था।

हाजी अली दरगाह की बात करे तो यह महाराष्ट्र राज्य के मुंबई शहर में स्थित है। दुनिया में ऐसे अनेक धार्मिक स्थल हैं, जो किसी ना किसी विशिष्ट धर्म से संबंध रखते हैं, लेकिन इन सभी के बीच कुछ स्थल ऐसे भी हैं जहां जाने वालों को किसी प्रकार की धर्म की दीवार में बांधा नहीं जा सकता। यहां हर वो व्यक्ति आता है जो ईश्वर के अस्तित्व पर विश्वास करता है, उसे अपना रहनुमा मानता है, फिर चाहे वो सिख हो, हिन्दू हो, ईसाई हो या फिर मुसलमान, धर्म की कोई बाधा उनके आड़े नहीं आती।

यह दरगाह समुद्र के बीच एक चट्टान पर स्थित है और यह एक लंबे कृत्रिम घाट के माध्यम से तट से जुड़ी हुई है जिस पर तीर्थ यात्रियों की भीड़ दरगाह की ओर जाती आती है। यह मुस्लिम और हिन्दू दोनों धर्मों के साथ-साथ अन्य धर्म के लोगों के लिए भी धार्मिक रूप से बहुत महत्त्वपूर्ण माना जाता है। इस दरगाह में सूफी संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र स्थित है।

मुंबई के वर्ली सी फ़ेस में स्थित हाजी अली मस्जिद का एक प्रमुख दर्शनीय स्थल है। किसी भी धर्म, जाति या मूल का व्यक्ति अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार हाजे अली दरगाह का अनुभव अवश्य लेता है। अरब सागर में स्थित हाजी अली शाह बुखारी की दरगाह। यहां हर धर्म के लोग आकर अपनी मनोकामना का धागा बांधकर जाते हैं। उन्हें यह उम्मीद होती है कि यहां मांगी गई मुराद जरूर पूरी होती है। दरगाह से युक्त ये मस्जिद मुंबई के वर्ली समुद्र तट के छोटे द्वीप पर स्थित है।

हाजी अली दरगाह के बारे में और जानते हैं | मुंबई में सबसे लोकप्रिय धार्मिक स्थानों में से एक है। हाजी अली शाह बुखारी और एक मस्जिद के दो महत्वपूर्ण स्मारकों-कब्र। इस स्मारक की वास्तुकला शैलियों और मुगल और इंडो-इस्लामिक वास्तुकला के पैटर्न को दर्शाता है। दरगाह टापू के ४५०० वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। दरगाह एवं मस्जिद की बाहरी दीवारें मुख्यतः श्वेत रंग से रंगी गयीं हैं। दरगाह के निकट एक ८५ फीट ऊँची मीनार है जो इस परिसार की एक पहचान है। मस्जिद के अन्दर पीर हाजी अली की मजार है जिसे लाल एवं हरी चादर से सज्जित किया गया है। मजार को चारों तरफ चाँदी के डंडो से बना एक दायरा है। मुख्य कक्ष में संगमरमर से बने कई स्तम्भ हैं जिनके ऊपर रंगीन काँच से कलाकारी की गयी है एवं अल्लाह के ९९ नाम भी उकेरे गए हैं।

हाजी अली दरगाह का नजारा बेहद दिलकश है। पानी की लहरों के बीच सफेद रंग से उज्जवल हाजी अली की दरगाह बेहद दर्शनीय लगती है। लोगों का मानना है कि जो भी व्यक्ति हाजी अली की दरगाह पर जाकर सच्चे मन से प्रार्थना करता है तो उसकी सभी इच्छाएं पूरी हो जाती हैं। यहां अपनी मुरादें पूरी होने पर श्रद्धालु आस्था से दोबारा दर्शन के लिए अवश्य आते हैं।

वरली खाड़ी (मुंबई) की यह दरगाह जमीन से करीब 500 गज की दूरी पर स्थित है। दरगाह तक पहुंचने के लिए एक रास्ता बना हुआ है और इसके दोनों ओर समुद्र है। दरगाह तक सिर्फ निम्न ज्वार के समय ही जाया जा सकता है। जिसके आसपास अरब सागर हिलोरे मारता है। इस दरगाह की सबसे खास बात यह है कि अरब सागर की तेज लहरें जब समुद्र के बाहर तक आ जाती हैं, तब दरगाह तक पहुंचने का मार्ग तो पानी में डूब जाता है लेकिन दरगाह के भीतर पानी की एक बूंद भी प्रवेश नहीं कर पाती।

सुन्नी समूह के बरेलवी संप्रदाय द्वारा इस दरगाह की देखरेख की जाती है। संत हाजी अली और उनके भाई अपनी माता की अनुमति से भारत आये थे । वे भारत में मुंबई के वर्ली इलाके में रहना शुरू किये। कुछ समय बाद जब उनके अपने गृह स्थान लौटने का समय आया तब वापस ना जाकर उन्होंने अपने मां के नाम एक पत्र भेजा जिसमें माफी मांगते हुए उन्होंने लिखा था कि अब वह यहीं (मुंबई) रहकर इस्लाम का प्रचार-प्रसार करेंगे, लोगों को इस्लाम की शिक्षा देंगे। हाजी अली शाह बुखारी एक बड़े व्यापारी थे लेकिन इस्लाम के प्रचार-प्रसार के लिए उन्होंने अपना कारोबार और धन त्यागकर एक संत की तरह जीवन जिया।

ऐसा माना जाता है कि जब वह हज करने के लिए मक्का की यात्रा पर गए थे तो जाने से पहले वे अपना सारा धन जरूरतमंदों को दान कर गए थे। मक्का की यात्रा के दौरान उनकी मृत्यु हो गई थी, ऐसा माना जाता है कि मृत्यु के बाद उनका शरीर जोकि एक ताबूत में था और अरब सागर में तैरते हुए उनके शव का ताबूत मुंबई आ पहुंचा था। जबकि कुछ लोग कहते हैं कि जहां आज दरगाह है उसी स्थल पर बहते पानी में ही डूबकर सूफी हाजी अली की मृत्यु हुई थी। उनकी मृत्यु के पश्चात उसी स्थान पर उनके अनुयायियों ने इस खूबसूरत दरगाह का निर्माण करवाया था।

दरगाह मुसलमानों के बीच एक प्रसिद्ध तीर्थ स्थल है। संरचना सफेद गुंबदों और मीनारों अवधि के मुगल वास्तुकला के साथ याद ताजा करती है। सफेद रंग की संरचना के लिए बड़ी संख्या में दर्शकों को आकर्षित करती है। इसके अलावा हाजी अली दरगाह के परिसर के बाहर स्थानीय स्टालों द्वारा कुछ स्वादिष्ट स्थानीय भोजन और इस तरह के कबाब, चाट, आइसक्रीम, मुगलई बिरयानी, हैदराबादी फास्ट फूड और यहां तक ​​कि अमेरिकी फास्ट फूड की भी पेशकश करते हैं।