अच्छी कहानी और सच्ची कहानी
ऑफिस से निकल कर शर्माजी ने स्कूटर स्टार्ट किया ही था कि उन्हें याद आया, पत्नी ने कहा था 1 दर्जन केले लेते आना।
तभी उन्हें सड़क किनारे बड़े और ताजा केले बेचते हुए एक बीमार सी दिखने वाली बुढ़िया दिख गई।
वैसे तो वह फल हमेशा "राम आसरे फ्रूट भण्डार" से ही लेते थे, पर आज उन्हें लगा कि क्यों न बुढ़िया से ही खरीद लूँ।
उन्होंने बुढ़िया से पूछा, केले कैसे दर्जन बेच रही हैं। बुढ़िया बोली, बाबूजी 20 रुपये दर्जन। शर्माजी बोले, १५ रूपए दूंगा।
बुढ़िया ने कहा, 18 रुपये दे देना। दो पैसे मैं भी कमा लूंगी।
शर्माजी बोले, 15 रुपये लेने है तो बोल, बुढ़िया मना कर दी। शर्माजी बिना कुछ कहे चल पड़े और "राम आसरे फ्रूट भण्डार" पर आकर केले का भाव पूछा तो वह बोला २८ रुपये दर्जन है।
बाबूजी कितने दर्जन दूँ ?
शर्माजी बोले, 5 साल से फल तुमसे ही ले रहा हूँ, ठीक से भाव लगाओ।
तो उसने सामने लगे बोर्ड की ओर इशारा कर दिया।
बोर्ड पे लिखा था, मोल भाव करने वाले माफ़ करें।
शर्मा जी को उसके यह व्यवहार बहुत बुरा लगा, उन्होंने कुछ सोचकर स्कूटर को वापस ऑफिस की ओर मोड़ दिया।
सोचते सोचते वह बुढ़िया के पास पहुँच गए।
बुढ़िया ने उन्हें पहचान लिया और बोली, बाबूजी केले दे दूँ, पर भाव 18 रुपये से कम नही लगाऊँगी।
शर्माजी मुस्कुरा कर कहा, एक नही दो दर्जन दे दो और भाव की चिंता मत करो।
बुढ़िया का चेहरा ख़ुशी से दमकने लगा। केले देते हुए बोली। बाबूजी मेरे पास थैली नही है। फिर बोली, एक टाइम था जब मेरा आदमी जिन्दा था, तो मेरी भी छोटी सी दूकान थी। सब्जी, फल सब बिकता था।
आदमी की बिमारी में दूकान चली गई। आदमी भी नही रहा। अब खाने के भी लाले पड़े हैं। किसी तरह पेट पाल रही हूँ। कोई औलाद भी नही है, जिसकी ओर मदद के लिए देखूं।
इतना कहते कहते बुढ़िया के आँखों में आंसू आ गए।
शर्माजी ने 50 रुपये का नोट बुढ़िया को दे दिया तो बोली, बाबूजी मेरे पास छुट्टे नही है।
शर्माजी बोले, चिंता मत करो, रख लो,अब मैं तुमसे ही फल खरीदूंगा, और कल मैं तुम्हे 500 रुपये दूंगा। धीरे धीरे चूका देना और परसों से बेचने के लिए मंडी से दूसरे फल भी ले आना।
बुढ़िया कुछ कह पाती उसके पहले ही शर्माजी घर की ओर रवाना हो गए। घर पहुँच कर उन्होंने पत्नी से कहा, न जाने क्यों हम हमेशा मुश्किल से पेट पालने वाले, ठेला पर सामान बेचने वालो से मोल भाव करते हैं किन्तु बड़ी दुकानों पर मुंह मांगे पैसे दे आते है।
शायद हमारी मानसिकता ही बिगर गई है। गुणवत्ता के स्थान पर हम चकाचौंध पर अधिक ध्यान देने लगे हैं।
अगले दिन शर्मा जी ने बुढ़िया को 500 रुपये देते हुए कहा, लौटाने की चिंता मत करना।
जो फल खरीदूंगा, उनकी कीमत से ही चूक जाएंगे।
जब शर्माजी ने ऑफिस में ये किस्सा बताया तो सबने बुढ़िया से ही फल खरीदना प्रारम्भ कर दिया।
तीन महीने बाद ऑफिस के लोगों ने स्टाफ क्लब की ओर से बुढ़िया को एक हाथ ठेला भेंट कर दिया। बुढ़िया अब बहुत खुश है। उचित खान पान के कारण उसका स्वास्थ्य भी पहले से बहुत अच्छा है |
हर दिन शर्माजी और ऑफिस के दूसरे लोगों को दुआ देती नही थकती।
शर्माजी के मन में भी अपनी बदली सोच और एक असहाय निर्बल महिला की सहायता करने की संतुष्टि का भाव रहता है।
जीवन में किसी बेसहारा की मदद करके देखो।
हमेशा अपने जीवन में खुश रहोगे।